सृष्टि प्रकरण
रमैनी 1
अंतर जोति शब्द एक नारी। हरि ब्रह्मा ताके त्रिपुरारी।।
ते तिरिये भग लिंग अनंता। तेउ न जाने आदिउ अंता।।
वाखरि एक विधातै कीन्हा। चैदह ठहर पाठ सो लीन्हा।।
हरि हर ब्रह्मा महन्तो नाऊ। तिन पुनि तीन बसावल गांऊ।।
तिन्ह पुनि रचल खण्ड ब्रह्मंडा। छव दर्सन छानवे पाखण्डा।।
पेटहि काहु न वेद पढ़ाया। सुनति कराय तुरक नहिं आया।।
नारी मोचित गरभ प्रसूती। स्वांग धरे बहुतै करतूती।।
तहिया हम तुम एकै लोहू। एकै प्रान वियापै मोहूँ ।।
एकै जनी जना संसारा। कौन ज्ञान ते भयऊ निनारा।।
भव बालक भग द्वारे आया। भग भोगी के पुरुख कहाया।।
अविगति की गति काहु न जानी। एक जीभ कित कहौं बखानी।।
जो मुख होय जीभ दस लाखा। तो कोई आय महन्तो भाखा।।
साखीः- कहै कबीर पुकारि के, इ लेऊ व्यवहार।
राम नाम जाने बिना, भव बूडि़ मुवा संसार।।
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शिव कहते हैं 'मनुष्य पशु है'- इस पशुता को समझना ही योग और तंत्र का प्रारम्भ है। योग में मोक्ष या परमात्मा प्राप्ति के तीन मार्ग हैं- जागरण, अभ्यास और समर्पण। तंत्रयोग है समर्पण का मार्ग। जब शिव ने जाना कि उस परम तत्व या सत्य को जानने का मार्ग है, तो उन्होंने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु वह मार्ग बताया।
ReplyDelete'पशु है मनुष्य'
शिव कहते हैं 'मनुष्य पशु है'- इस पशुता को समझना ही योग और तंत्र का प्रारम्भ है। योग में मोक्ष या परमात्मा प्राप्ति के तीन मार्ग हैं- जागरण, अभ्यास और समर्पण। तंत्रयोग है समर्पण का मार्ग। जब शिव ने जाना कि उस परम तत्व या सत्य को जानने का मार्ग है।शिव को स्वयंभू इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वे आदिदेव हैं, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था सिर्फ वही थे, उन्हीं से धरती पर सब कुछ हो गया। शिव का दर्शन : शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वह सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जीयो, वर्तमान में जीयो अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो।
अंतत : शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है और इस भिन्नता का कारण है परम्परा और भाषा का बदलते रहना, पुराणिकों द्वारा उनकी मनमानी व्याख्या करते रहना।
धन्यवाद जी आप ही सोच कर बताये जो कोई भी जीव जीसने शरीर धारण कीया है वह है मनुष्य अब मनुष्य बताने पर मनुष्य का लिंग(गति) बीचमें तो नही आता न ! बस मनुष्य तो मनुष्य है जैसे बच्चे होते होते है वैसे ही जब मनुष्य मृत्युके द्वार पर खडा हो एक परिस्थिती, दो अगर मृत्यु आ गई और शरीर छूट गया और फिरभी मनुष्य अपने आप को जिंदा पाए तो उसे आप कौनसी स्थिति में रखेंगे जहा पर उसकी एक ना चले ! शरीरसे सबंध कट गया इन्द्रिया, मन-बुद्धि, चित्त-वृत्ति और अहंकार के भी पार निकल गया जीव ! तो कौन बचेगा ? फिर से दौहराता हुँ ! शरीर है नोर्मल लाईफ चल रही है पर वहा पर आपकी और संसार में कीसी ओर की भी आपके उपर कुछ भी ना चले जो कुछ भी चलता हो उसे कोई भी नाम और रुप देना हमारे बस के बार हो मतलब उसे परमात्मा एसे शब्दोंसे भी संबोधित करना भी संभव ना हो फिरसे समझे मृत्युके पार वाली स्थिति कोई भी बता सकता है ? वास्तव में सबके बीच साबित कर सकता है ? के यह मनुष्य कैइ सो साल पहले मर चुका है पर आजकल दुसरा शरीर धारण करके यहा पर रह रहा है ? फिर वह हमारे गुरु सद्गुरु भगवान के कैइ अवतार मेंसे कोई भी एक बताये ? जहा सोच विचार भी पूरे हो जाये वहा मनुष्य नाम रुप के बारे में तो क्या बताये "अनंत काल से सबके दिलो में सबके साथ सबका विकास जो होते रहता है सदा काल से उस परमात्मा का भी नाम कैसै ले शरीर छूट जाने के बाद अब जो भी कुछ लीखते है देखते है सोचते है वह कोई दूसरा है मै नही ! और अगर मै है तो भी मै नही बता पाएगा वह क्या है ! और बताने की कोशिश भी की तो वह सच नहि होगा मनुष्य खुद ही खुद के साथ धोखा करेगा फिरसे जन्भ मृत्युके चकरावे में फस जायेगा ! हमे तो सिर्फ आत्म कल्याण करना कैसे जैसे भगवान श्री कृष्ण जो संसार के अनुसार आखरी ब्रह्म के अवतार ने अर्जुन रुपी जीव जो लदाई के मै दान(जहा मै का दान होना अति आवश्यक होता है तो ही भगवान होते है और जहाँ परमात्मा वहा सत्य होता है और जहा सत्य है वहा विजय भी होति ही है सदकाल) में अपने लक्ष्यसे कभी विचलित नहीं होता था और पांडवो में श्रेष्ठ धनुर्धर भी था जो सबंधो के चकरावे में विचलित हो गया और भगवन ने उस जीव को उस सबंधोके चकरावे से बहार निकालते हूवे सबसे पहले आत्मा के बारे में बताया जो अमर है उसके बारे में सोच विचार और चिंतन करवाया और वर्तमान स्थिति और परस्थिति से परे लेकर गये युध्ध भूमि के बीच बस यही तो करना है हमे स्वयं के लिए इस मरुभूमि पर अपना नाशवंत नश्वर देह छोडकर शाश्वत आत्मा परमात्मा से अपने को जोड कर चिंतन कर एका कर लेना जैसे इस नश्वर देह से जूडे जाने अन्जाने में बरसो बरस के अभ्यास नही अभ्याससे वैसे ही समझ लगे तो शाश्वत का चिंतन करना मृत्यु का विचार करके अपने मन को परमात्मा का, देरसबेर अभ्यास कराते रहना यही है सत्त संग सांसो को सांसो के मूल तक ले जाना उसे प्राणो के स्वरुप में पकड कर रखना जहां देह का छूट जाना आसान लगे जहा नश्वर देह के विचार खतम हो जाएं जहाँ शाश्वत वर्तमान ही सत्य बचे ओम सत्त गुरु सद्गुरु वे नमो नम: जो बोले सो निहाल सत्त श्री अकाल अपने स्वयं के बलबूते पर अनुभव अनुभूति से परमात्मे नम:
ReplyDeleteधन्यवाद जी आप ही सोच कर बताये जो कोई भी जीव जीसने शरीर धारण कीया है वह है मनुष्य अब मनुष्य बताने पर मनुष्य का लिंग(गति) बीचमें तो नही आता न ! बस मनुष्य तो मनुष्य है जैसे बच्चे होते होते है वैसे ही जब मनुष्य मृत्युके द्वार पर खडा हो एक परिस्थिती, दो अगर मृत्यु आ गई और शरीर छूट गया और फिरभी मनुष्य अपने आप को जिंदा पाए तो उसे आप कौनसी स्थिति में रखेंगे जहा पर उसकी एक ना चले ! शरीरसे सबंध कट गया इन्द्रिया, मन-बुद्धि, चित्त-वृत्ति और अहंकार के भी पार निकल गया जीव ! तो कौन बचेगा ? फिर से दौहराता हुँ ! शरीर है नोर्मल लाईफ चल रही है पर वहा पर आपकी और संसार में कीसी ओर की भी आपके उपर कुछ भी ना चले जो कुछ भी चलता हो उसे कोई भी नाम और रुप देना हमारे बस के बार हो मतलब उसे परमात्मा एसे शब्दोंसे भी संबोधित करना भी संभव ना हो फिरसे समझे मृत्युके पार वाली स्थिति कोई भी बता सकता है ? वास्तव में सबके बीच साबित कर सकता है ? के यह मनुष्य कैइ सो साल पहले मर चुका है पर आजकल दुसरा शरीर धारण करके यहा पर रह रहा है ? फिर वह हमारे गुरु सद्गुरु भगवान के कैइ अवतार मेंसे कोई भी एक बताये ? जहा सोच विचार भी पूरे हो जाये वहा मनुष्य नाम रुप के बारे में तो क्या बताये "अनंत काल से सबके दिलो में सबके साथ सबका विकास जो होते रहता है सदा काल से उस परमात्मा का भी नाम कैसै ले शरीर छूट जाने के बाद अब जो भी कुछ लीखते है देखते है सोचते है वह कोई दूसरा है मै नही ! और अगर मै है तो भी मै नही बता पाएगा वह क्या है ! और बताने की कोशिश भी की तो वह सच नहि होगा मनुष्य खुद ही खुद के साथ धोखा करेगा फिरसे जन्भ मृत्युके चकरावे में फस जायेगा ! हमे तो सिर्फ आत्म कल्याण करना कैसे जैसे भगवान श्री कृष्ण जो संसार के अनुसार आखरी ब्रह्म के अवतार ने अर्जुन रुपी जीव जो लदाई के मै दान(जहा मै का दान होना अति आवश्यक होता है तो ही भगवान होते है और जहाँ परमात्मा वहा सत्य होता है और जहा सत्य है वहा विजय भी होति ही है सदकाल) में अपने लक्ष्यसे कभी विचलित नहीं होता था और पांडवो में श्रेष्ठ धनुर्धर भी था जो सबंधो के चकरावे में विचलित हो गया और भगवन ने उस जीव को उस सबंधोके चकरावे से बहार निकालते हूवे सबसे पहले आत्मा के बारे में बताया जो अमर है उसके बारे में सोच विचार और चिंतन करवाया और वर्तमान स्थिति और परस्थिति से परे लेकर गये युध्ध भूमि के बीच बस यही तो करना है हमे स्वयं के लिए इस मरुभूमि पर अपना नाशवंत नश्वर देह छोडकर शाश्वत आत्मा परमात्मा से अपने को जोड कर चिंतन कर एका कर लेना जैसे इस नश्वर देह से जूडे जाने अन्जाने में बरसो बरस के अभ्यास नही अभ्याससे वैसे ही समझ लगे तो शाश्वत का चिंतन करना मृत्यु का विचार करके अपने मन को परमात्मा का, देरसबेर अभ्यास कराते रहना यही है सत्त संग सांसो को सांसो के मूल तक ले जाना उसे प्राणो के स्वरुप में पकड कर रखना जहां देह का छूट जाना आसान लगे जहा नश्वर देह के विचार खतम हो जाएं जहाँ शाश्वत वर्तमान ही सत्य बचे ओम सत्त गुरु सद्गुरु वे नमो नम: जो बोले सो निहाल सत्त श्री अकाल अपने स्वयं के बलबूते पर अनुभव अनुभूति से परमात्मे नम:
ReplyDeleteSahib bandgi ji
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